Wednesday, October 8, 2008

स्पृहा मेरे मन की

नीले गगन में पंछियों संग उड़ना है मुझे ,
बादलों संग अठखेलियाँ करने की स्पृहा है मेरे मन की ।

गूंजा करे सारी फिजायें किलकारियों से मेरी ,
घर का हर कोना रोशन करने की स्पृहा है मेरे मन की ।

हिरनी के समान कुलांचे मारा करूँ उपवन में ,
प्रकृति के सानिध्य में खो जाने की स्पृहा है मेरे मन की ।

माँ देखे मुझे तो भर दूँ खुशियाँ उनके नयनो में ,
पिता का गर्व दीप्त मुख देखने की स्पृहा है मेरे मन की ।

उत्थान के सोपान पर चढ़ते जन है मुझे ,
सफलता के शिखर को चूमने की स्पृहा है मेरे मन की ।

माँ की गोद में मीठी नींद की ख्वाहिश है मेरी ,
स्वप्न में परियों की साक्षी बंनने की स्पृहा है मेरे मन की ।

इन्ही सपनो में जन्मने की प्रतीक्षा में थी मैं ,
की औजारों के बीच घुटने लगी स्पृहा मेरे मन की ।

ओह ! तो पिताजी के लिए बोझ बन गई हूँ मैं ,
माँ , मेरी प्यारी माँ भी समझ न सकी स्पृहा मेरे मन की ।

जब देखना ही नही चाहते मेरे इश्वर मुस्कान मेरे मुख की ,
तो शायद ही प्रार्थना में कह सकूँ उस इश्वर से स्पृहा मेरे मन की ।

भीगने लगा है , दर्द भरे आंसुओं से वदन मेरा अब ,
कोई समझे और पोंछ दे कोमल हस्तों से, यही स्पृहा है मेरे मन की।
एक बार , बस एक बार आने तो दो इस दुनिया में मुझे ,
शायद आपकी दुनिया को स्वर्ग बना दे स्पृहा मेरे मन की ।

संस्कारों से सपनों का आशियाँ सजाऊँगी मैं ,
बस भर देना झोली मेरी आशीर्वाद भरे नेह से , स्पृहा यही मेरे मन की ।

क्यारी की कोमल कली बन आपकी बगिया को मेह्कौंगी ,
बस सींचने की जगह नष्ट कर न देना स्पृहा है मेरे मन की ।

दुनिया में देश का परचम लहराऊंगी ,
उन्नति की द्योतक होंगी कन्याएं , है स्पृहा यही मेरे मन की ।






8 comments:

Tara said...

Waah! Kya स्पृहा है tumhaरे मन की !! It's a beautfully written poem, the importance of the girl child, what with rampant female foeticide, very sensitively portrayed. Keep going :)

gaurangi said...

@tara
thank you
:)

Where thoughts are Word$ said...

A very inspiring and thought provoking poem!!

Really very nicely written and aptly named.

:)

Sakshi Arora said...

nice poem, you know it. Write more now?
Please?
Want to read.
S.

gaurangi said...

@ where thoughts
thanx
:)

gaurangi said...

@ sakshi
will write soon
searching for something nice enough.
:)

Nikkita mathur said...

gurly..that was a nice poem..goes along smoothly..full of emotions,curiosity and thoughtfulness...brings u in touch with a very sensitive stigma..female foeticide..!!

being a gurl myself..i can so relate to the child who never even got a chance to come into this world..
*sigh*

gaurangi said...

@nikkita
it was all i really felt abt a little girl child who is there somewhere dreaming of her beautiful life...
n do we have the right to take away her right of living...even before her coming to this world???